हिंदी समास (What is Samas), परिभाषा, भेद एवं उदाहरण
हिंदी समास – समास और संधि के द्वारा शब्द रचना की जाती है। समास और संधि की शब्द रचना में अंतर होता है। संधि से केवल शब्द की रचना की जा सकती है। जबकि समास से शब्द और पद दोनों रचनाएं की जाती है। इनमें समास के द्वारा बने पद को समास पद कहते है।
समास की परिभाषा
परिभाषा – दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बना हुआ नया सार्थक शब्द समास कहलाता है|
समास का अर्थ – “संक्षेप करना”। जब दो शब्द मिलाये जाते है तो उनके बीच दिये गये शब्द लुप्त हो जाते है। इन शब्दों में विशेषत: कारक होते है। इस प्रकार अनेक शब्दों के लिये एक समस्त पद बन जाता है।
समस्त पद – जिस प्रकार संधि में दो अक्षर पास-पास लाये जाते है उसी प्रकार समास में दो शब्द पास-पास लाये जाते है या मिलाये जाते है इन शब्दों में मुख्य शब्द और गौण शब्द होते है। इन मुख्य शब्द ओर गौण शब्दों मे कारक, संयोजक शब्द, संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण भी होते है । इन सभी को समास के नियम के द्वारा मिलाकर एक पद बनाया जाये तो उसे समस्त पद कहा जाता है। सीधे अर्थ में हम कह सकते है कि समास के नियमों से बना पद सामासिक पद या समस्त पद कहलाता है|
समास विग्रह –
समास के नियम से बने सामसिक पद के अनेक पदों को अलग-अलग करने की प्रक्रिया समास विग्रह कहलाती है। समास विग्रह को हम व्यास भी कहते है। इसमे अनेक पद मिले होते है जिसका संबंध होता है कि कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ प्रकट हो यही समास का प्रमुख लक्ष्य होता है। जैसे – नीलकमल । इसमें अनेक पद मिले हुये है। इन पदों को अलग अलग करने पर – नीला है जो कमल।
पद – सामान्यत: शब्द को ही पद कहा जाता है। लेकिन जब दो या दो से अधिक शब्द मिलकर एक पद का निर्माण करते है तब जिस नियम से बने पद को उसका नाम दिया जाता है।
जैसे – संज्ञा पद, विशेषण पद, क्रिया पद, समास पद
समास पद/सामासिक पद –
समास पद मे कम से कम दो पद अवश्य होते है। एक शब्द को समास पद नहीं माना जाता है क्योंकि पदों के आधार पर ही समास में प्रधानता को बोध होता है । सामान्यतः समास में तीन पद होते लेकिन अधिकतर दों पदों का प्रचलन अधिक होता है।
(1 ) पूर्वपद (2) उत्तरपद
- पूर्व पद – पहला वाला पद पूर्व पद होता है। अर्थात जिस पद को मिलाते समय या पद संरचना करते समय पहले रख जाता है। जैसे – प्रयोगशाला
इस सामासिक पद में “प्रयोग” पहला पद है। इसे प्रथम पद भी कहा जाता है।
- उत्तर पद – जब समास पद की रचना दो पदों से मिलकर की गयी है तो अंतिम पद को ही दूसरा पद कहा जाता है। जैसे – प्रयोगशाला = प्रयोग के लिये शाला
इसमें अंतिम पद शाला है। जबकि प्रथम पद प्रयोग है।
पदों की प्रधानता
पदों की प्रधानता का अर्थ होता है कि जब समासिक पद में अन्य पद समान रूप से बराबर न होकर एक दूसरे पद पर निर्भर या आश्रित होतें है। जो पद दूसरे पद पर आश्रित होते है। उस पद को हम गौण पद कहते है। गौण पद हमेशा मुख्य पद पर आश्रित होता है। पदों की प्रधानता के आधार पर ही पदों में भेद किया जाता है–
उत्तरपद प्रधान | तत्पुरूष समास, कर्मधारय समास, द्विगु समास |
पूर्व पद प्रधान | अव्ययी भाव समास |
दोनों पद प्रधान | द्वंद्व समास |
दोनों पद अप्रधान | बहुब्रीही समास |
तृतीय पद की प्रधानता | जब उत्तर पद और पूर्व पद दोनों में से कोई भी पद प्रधान न हो |
- उत्तरपद प्रधान – जिन समास मे उत्तरपद प्रधान होता है|
जैसे – तत्पुरूष समास, कर्मधारय समास, द्विगु समास
- पूर्व पद प्रधान – जिसका पहला पद प्रधान हो।
जैसे – अव्ययी भाव समास
- दोनों पद प्रधान – जिस सामासिक पद में दोनों पद प्रधान हो।
जैसे – द्वंद्व समास
- दोनों पद अप्रधान – जिस समासिक पद मे दोनो पद अप्रधान हो ।
जैसे – बहुब्रीही समास
- तृतीय पद की प्रधानता – जब उत्तरपद और पूर्व पद दोनों में से कोई भी पद प्रधान न हो या दोनों पद बराबर प्रधानता वाले हो तो उसमें तृतीय पद प्रधान होता है। सामान्यत: कहा जा सकता है यह पद अदृश्य होता है इस कारण इसमें तीसरा अर्थ प्रधान माना जाता है।
जैसे – विषधर। विष को धारण करने वाला। इस वाक्य में विष और धारण दोनों ही गौण पद है यह पद कोई तीसरा अर्थ निकल रहा है इसलिये तीसरा अर्थ पद प्रधान होगा अर्थात दोनों पद अप्रधान माने जायेगें।
विभक्तियां –
सामासिक पद को अलग करने वाले शब्द विभक्तियां कहलाते है| इनमे कारक शामिल होते है। कारक विभक्तियां सामान्यतः आठ प्रकार की होती है लेकिन समास में केवल छ: विभक्तियों का प्रयोग समास विग्रह में किया जाता है । जिसमें संबोधन और कर्ता कारक विभक्ति का प्रयोग नहीं होता है ।
प्रयोग की जाने वाली छ: विभक्तियों के नाम :–
कर्म कारक | द्वितीया विभक्ति |
करण कारक | तृतीय विभक्ति |
संप्रदान विभक्ति | चतुर्थी विभक्ति |
अपादान विभक्ति | पंचमी विभक्ति |
संबंध विभक्तियां | षष्ठी विभक्ति |
अधिकरण विभक्ति | सप्तमी विभक्ति |
- कर्म कारक – द्वितीया विभक्ति कहते है ।
- करण कारक – इसे तृतीय विभक्ति कहते है
- संप्रदान विभक्ति – इसे चतुर्थी विभक्ति कहा जाता है ।
- अपादान विभक्ति – इसे पंचमी विभक्ति कहा जाता है ।
- संबंध विभक्तियां – इसे षष्ठी विभक्ति कहा जाता है ।
- अधिकरण विभक्ति – इसे सप्तमी विभक्ति कहा जाता है|
इन्ही विभक्तियों के आधार पर तत्पुरूष समास को छ: भेदों में बांटा गया है|
समास के भेद
समास 6 प्रकार के होते है –
- अव्ययी भाव समास
- तत्पुरूष समास
- कर्मधारय समास
- द्विगु समास
- द्वंद्व समास
- बहुव्रीहि समास
1. अव्ययी भाव समास – हिंदी समास
जिस समास में पहला पद प्रधान होता है उसे अव्ययी भाव समास कहा जाता है। यह वाक्य में क्रिया विशेषण का कार्य करता है या जिस समास में पूर्व पद अव्यय हो अर्थात खर्च न हो उस सामासिक पद में अव्ययी भाव समास होता है।
जैसे –
समस्त-पद | समास विग्रह |
---|---|
यथासमय | समय के अनुसार |
आजीवन | जीवन भर |
प्रति-दिन | प्रत्येक दिन |
अनुरूप | रूप के अनुसार |
भर पेट | पेट भर कर |
यथेष्ट | यथा ईष्ट |
उपकृष्ण | कृष्ण के समीप |
आसेतु | सेतु तक |
प्रतिदिन | दिन दिन |
2. तत्पुरूष समास – हिंदी समास
जिस समासिक पद में पूर्व पद गौण और उत्तर पद प्रधान हो, उसे तत्पुरूष समास कहा जाता है। इसमें विभक्तियों का प्रयोग किया जाता है। दोनों पदों के बीच कारक चिन्ह लोप हो जाता है| विभक्तियों के आधार पर तत्पुरुष समास के छः भेद है-
(।) कर्म तत्पुरुष समास
इसे द्वितीया तत्पुरुष भी कहा जाता है। इसमें ‘को’ विभक्ति का लोप होता है।
जैसे –
समस्त-पद | समास विग्रह |
---|---|
गगनचुम्बी | गगन को चूमने वाला |
मतदाता | मत को देने वाला |
गिरहकट | गिरह को काटने वाला |
नगरगमन | नगर को गमन करने वाला |
ज्ञान प्राप्त | ज्ञान को प्राप्त करने वाला |
चिड़ीमार | चिड़ियों को मारने वाला |
जेबकतरा | जेब को कतरने वाला |
गुरु नमन | गुरु को नमन करने वाला |
(II) करण तत्पुरुष समास
इसमें करण कारक विभक्ति का लोप होता है। इसे तृतीया तत्पुरुष कहा जाता है। लोप होने वाली विभक्ति ‘से’ और ‘के द्वारा’ है। जैसे –
समस्त-पद | समास विग्रह |
---|---|
भयातुर | भय से आतुर |
श्रद्धापूर्ण | श्रद्धा से पूर्ण |
ईश्वर प्रद्दत | ईश्वर के द्वारा प्रद्दत |
ईश्वरदत्त | ईश्वर के द्वारा दिया हुआ |
कष्टसाध्य | कष्ट से साध्य (कष्ट से साधा) |
मुँह मांगा | मुँह से मांगा हुआ |
शोक ग्रस्त | शोक से ग्रस्त |
(III) संप्रदान तत्पुरुष समास
इसमे संप्रदान कारक विभक्ति का लोप होता है। इसे चतुर्थी तत्पुरुष कहते है। इसमें कारक विभक्ति ‘के लिये’ का लोप होता है।
जैसे –
समस्त-पद | समास विग्रह |
---|---|
राष्ट्र प्रेम | राष्ट्र के लिये प्रेम |
पूजा घर | पूजा के लिये घर |
डाकगाड़ी | डाक के लिए गाड़ी |
विद्यालय | विद्या के लिये आलय |
घुड़साल | घोड़े के लिए साल |
भूतबलि | भूत के लिये बलि |
गौशाला | गाय के लिए शाला |
सिनेमा घर | सिनेमा के लिये घर |
(IV) अपादान तत्पुरुष समास
इसे पंचमी तत्पुरष कहा जाता है। इसमे अपादान विभक्ति ‘से’ का लोप हो जाता है।
जैसे –
समस्त-पद | समास विग्रह |
---|---|
धनहीन | धन से हीन |
दोषमुक्त | दोष से मुक्त |
चरित्रहीन | चरित्र से हीन |
गुणरहित | गुण से रहित |
लक्ष्यहीन | लक्ष्य से हीन |
जन्मांध | जन्म से अंधा |
(V) संबंध तत्पुरुष समास
इसमें संबंध कारक विभक्ति ‘का’, ‘की’, ‘के’ आदि का लोप होता है ।
जैसे –
समस्त-पद | समास विग्रह |
---|---|
देव कृपा | देव की कृपा |
जलधारा | जल की धारा |
विषयसूची | विषय की सूची |
राजपुरुष | राजा का पुरुष |
मंत्रिपरिषद | मंत्रियों की परिषद |
वायुयान | वायु का यान |
चर्मरोग | चर्म का रोग |
(VI) अधिकरण तत्पुरुष समास
इसमें अधिकरण कारक विभक्ति ‘में और ‘पर’ का लोप होता है।
जैसे –
समस्त-पद | समास विग्रह |
---|---|
आप बीती | आप पर बीती |
नगरवास | नगर में वास |
वनवास | वन में वास |
दानवीर | दान में वीर |
साइकिल सवार | साइकिल पर सवार |
फलासक्त | फल में आसक्त |
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3. कर्मधारय समास – हिंदी समास
कर्मधारय समास में भी उत्तर पद प्रधान होता है, इसमें प्रथम पद विशेषण तथा द्वितीय पद विशेष्य होता है| इस समास में उपमेय और उपमान का संबंध पाया जाता है।
जैसे –
समस्त-पद | समास विग्रह |
---|---|
नीलकमल | नीला है जो कमल |
महाकाव्य | महान है जो काव्य |
सद्गुण | सद है जो गुण |
महाराजा | महान है जो राजा |
भलामानस | भला है जो मानस |
4. द्विगु समास – हिंदी समास
जिस समास का पहला पद संख्यावाचक हो तथा पूरा पद समूह का बोध कराये, वह द्विगु समास होता है|
जैसे –
समस्त-पद | समास विग्रह |
---|---|
चौमासा | चार मांसों का समाहार |
नवरत्न | नौ रत्नों का समूह |
सतसई | सात सौ का समूह |
त्रिभुवन | तीनों भुवनों का समूह |
पंचतत्व | पांच तत्वों का समूह |
चौराहा | चार राहों का समूह |
शताब्दी | सौ वर्षों का समूह |
5. द्वन्द्व समास – हिंदी समास
द्वन्द्व समास में दोनों पूर्व पद तथा उत्तरपद प्रधान होते है या जोडे के साथ होते है तथा अर्थ की दृष्टि से दोनों पद स्वतंत्र होते है एवं उनके मध्य के संयोजक शब्द हो लोप हो जाता है|
जैसे –
समस्त-पद | समास विग्रह |
---|---|
माता – पिता | माता और पिता |
पाप-पुण्य | पाप और पुण्य |
राजा – रानी | राजा और रानी |
भला – बुरा | भला और बुरा |
फल-फूल | फल और फूल |
लाभ हानि | लाभ और हानि |
आगा-पीछा | आगा और पीछा |
6. बहुब्रीहि समास – हिंदी समास
जिस समास में दोनों पदों के माध्यम से एक तीसरे अर्थ (विशेष) का बोध होता है अर्थात इसमें दोनों पद अप्रधान होते है तथा तीसरा अर्थ पद प्रधान होता है या तीसरे पद की ओर संकेत करता है, उसे बहुब्रीहि समास कहते है|
जैसे –
समस्त-पद | समास विग्रह |
---|---|
महादेव | महान है जो देव अर्थात शिव |
चंद्रमौलि | चंद्र है मोलि पर जिसके अर्थात शिव |
दशानन | दश है आनन जिसके अर्थात रावण |
लम्बोदर | लम्बा है जिनका उदर अर्थात गणेशजी |
घन श्याम | घन के समान श्याम है अर्थात कृष्ण |
गिरिधर | गिरि को धारण करने वाले अर्थात कृष्ण |
विष धर | विष को धारण करने वाला अर्थात सर्प |
मृत्युंजय | मृत्यू को जीतने वाला अर्थात शंकर |
नीलकंठ | नीला है कंठ जिनका अर्थात शिवजी |
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दो समासों के बीच अंतर
कर्मधारय और बहुब्रीहि समास में अंतर
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