समासोक्ति अलंकार की परिभाषा एवं प्रमुख उदाहरण व्याख्या सहित

समासोक्ति अलंकार की परिभाषा, प्रमुख उदाहरण

समासोक्ति अलंकार किसे कहते है?

परिभाषा – 1. जहाँ उपमेय का वर्णन इस प्रकार किया जाये की उसमें अप्रस्तुत का ज्ञान भी हो, या व्यंजना से अप्रस्तुत की अभिव्यक्ति हो तब वहां समासोक्ति अलंकार होता है। या जब प्रस्तुत द्वारा अप्रस्तुत का बोध कराया जाता है तब समासोक्ति अलंकार होता है, किन्तु यहाँ प्रस्तुत की प्रधानता होती है। समासोक्ति, अन्योक्ति का उल्टा होता है. अथवा

परिभाषा – 2. ‘अप्रस्तुत हो, प्रस्तुत से व्यक्त’ अर्थात जहाँ पर कार्य, लिंग या विशेषण की समानता के कारण प्रस्तुत के कथन में अप्रस्तुत के व्यवहार का समापन हो, वहां समासोक्ति अलंकार होता है. अथवा

परिभाषा – 3. समासोक्ति का अर्थ है – समास (संक्षेप) + उक्ति (कथन) अर्थात ‘संक्षेप में कथन’| जहाँ वाच्यार्थ के साथ-साथ व्यंग्यार्थ भी निकलता है परन्तु प्रधानता वाच्यार्थ की ही होती है, वहां समासोक्ति अलंकार होता है। (प्रस्तुत के वर्णन में समान अर्थ सूचक विशेषणों के द्वारा)

उदाहरण – कुमुदिनि प्रमोदित भाई सांस, कलानिधि जाये।

व्याख्या – उपर्युक्त उदाहरण में शाम को जिस प्रकार चंन्द्रमा के उदय होने से कुमुदिनि के खिलने की बात (प्रस्तुत) के माध्यम से किसी नई नवेली दुल्हन को अपने (कलाओं के निधि) प्रियतम के शाम को घर आने (अप्रस्तुत) पर खिल उठना (प्रसन्न होना) का बोध से कराया गया है।

समासोक्ति अलंकार के उदाहरण –

1. नहि पराग नहि मधुर मधु, नहि विकास यहि काल.
  अली कली ही सों बंध्यो, आगे कौन हवाल |

यहाँ प्रस्तुत अर्थ है - जयसिंह
अप्रस्तुत अर्थ है - अलि, पराग, मधु।
2. वन-वन उपवन,
छाया उन्मन-उन्मन गुंजन,
नव वय के अलियों का गुंजन |

यहाँ प्रस्तुत अर्थ है - भ्रमरों का। 
अप्रस्तुत अर्थ है - नवयुवक कवियों का। 
3. सहृदय जन के जो कंठ का हार होता, मुदित मधुकरी का जीवनाधार होता |
वह कुसुम रंगीला धूल में जा पड़ा है, नियति! नियम तेरा भी बड़ा ही कड़ा है ||

यहाँ प्रस्तुत अर्थ है - फूल टूटकर गिरना। 
अप्रस्तुत अर्थ है - किसी युवा की अकाल मृत्यु होना।

4. मिलहु सखी हम तहवाँ जाहीं, जहाँ जाइ पुनि आउब नाहीं|
सात समुद्र पार वह देसा, कित रे मिलन कित आब संदेसा ||

यहाँ प्रस्तुत अर्थ है - पद्मावती के ससुराल जाने का वर्णन। 
अप्रस्तुत अर्थ है - किसी मानव के परलोक जाने का। 
5. सो दिल्ली अस निबहुर देसू, कोई न बहुरा, कहइ संदेसू |
जो गवनै, सो तहाँ कर होई जो आवै, किछु जान न सोई ||

यहाँ प्रस्तुत अर्थ है - दिल्ली 
अप्रस्तुत अर्थ है - परलोक 
6. स्वारथ सुकृत न श्रमु बृथा, देहि बिहंग विचारि। बाज, पराए पानि परि, पच्छीनु न मारि || 

यहाँ बाज पक्षियों को मारने के बहाने से राज जयसिंह को समझाया गया कि वो हिन्दुओं का नर संहार न करे। 
7. सिंधु-सेज पर धरा-वधु तनिक संकुचित बैठी सी। 

यहाँ प्रस्तुत अर्थ है - धरा वधु। 
अप्रस्तुत अर्थ है - नायिका 
8. को छुट्यो इहि जाल परि, कत कुरंग अकुलात। ज्यों-ज्यों सुरझि भज्यो चहत, त्यों-त्यों उरझत जात।।

अन्योक्ति और समासोक्ति अलंकार में अन्तर

आइये अन्योक्ति और समासोक्ति अलंकार में अंतर को इन उदाहरणों से समझते है –

अन्योक्ति अलंकार समासोक्ति अलंकार
उदाहरण – नहि पराग नहि मधुर मधु, नहि विकास यहि काल, अली कली ही सों बंध्यो, आगे कौन हवाल |उदाहरण – सहृदय जन के जो कंठ का हार होता, मुदित मधुकरी का जीवनाधार होता | वह कुसुम रंगीला धूल में जा पड़ा है, नियति! नियम तेरा भी बड़ा ही कड़ा है ||
अप्रस्तुत – कली और भौरें का वर्णन
प्रस्तुत – राजा जयसिंह और उनकी नवोढ़ा पत्नी की ओर संकेत।
प्रस्तुत – फूल का टूट कर गिरना।
अप्रस्तुत – किसी युवा की अकाल काल मृत्यु होना।

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